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Alok Singh

Others

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Alok Singh

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सब माया मोह है

सब माया मोह है

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हाथ में कलम है 

दिल में जलन है, 

सोचता हूँ जो मैं 

भरम ही भरम है, 

उस गली के मोड़ पे 

डूबता सूरज जो है 

बदहवाली के निशां पे 

लगता मूरख है वो, 

जल गया क्यूँ वो बेचारा 

दूसरे की राह में ,

दे उजाला अंधों को 

परेशान है खुद की आह में, 

किस नज़र से देख पाऊँ 

किस नज़र को मैं छुपाऊँ, 

ज़िस्म छलनी है हुआ अब 

दिल को अब कैसे दिखाऊँ। 


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