सावन
सावन
रिमझिम बरस रहा है सावन
भींग उठा सारा तन मन
धरा ने डाली हरी चुनरियॉं
इठलाती जैसे गांव की गोरियां
बूंदों पर छाया खुमार
कलियों पर खिला उभार
सुनों पपीहे की गुहार
यौवन पर है चढ़ा निखार
सुन एक विरहन की पुकार
जो दिखती आसमां के पार
ना कोई समझें ना कोई जानें
कोई तों दिल को पहचानें
लुकती छिपती बदली को
एक विरहन की ऑंखें देख रही
कब बरसेंगी बुॅंदे
ये आशाएं घेर रहीं
अबकी सावन ऐसा आया
ना कोई झूमा ना कोई गाया
प्रकृति ने बहुत रिझाया
पर हमनें भी मन को समझाया
माना धरा के मानस पटल पर
प्रकृति ने खूबसूरत चित्र उखेरा है
पर सखियों के अनुपस्थिति ने
मन को बहुत उधेड़ा है
वक्त ने ऐसा खेल रचाया
कुछ अच्छा कुछ बुरा है पाया
परिवार के साथ खुश रहें हम
ये भी तों सौभाग्य है पाया
वक्त एक दिन करवट लेगा
ये दिन भी कट जाएंगे
हम इंतजार करेंगे
उन सुखद पलों का
वो प्यार भरा सावन
फिर आएगा!