सावन
सावन
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तपता सूरज, गर्म हवा
शुष्क हुआ मौसम
बजंर हुई धरती ऐसे
निष्ठुर पी मन हुआ विह्लल
कब बरसेंगे बदरा कारे
कब बरसेगीं प्रेम की
ठण्डी फुहारें
सावन ओ सावन अब के
बरस तू जल्दी आ
हर ग़म की तो बस तू है दवा
आकर तू प्रेम का सन्देसा बरसा
दे पी को सन्देसा
दग्ध ह्रदय की प्यास बुझा ।
चमके बिजुरिया, लरजे ये मन
तन-मन को छू रही है शीतल पवन
सन्देसा दे पिया को
पुरवाई संग संग तू भी बहना
पुलकित हुआ सावन में मन
बुझी धरती की भी अग्न
प्राकृति ने किया श्रृंगार
बरसे है मेघा छा गई बहार।