साथ वो ही चले
साथ वो ही चले


रातों को हराना दिन से हार जाना
जानते हों,
गैरों को हँसाना दिल को रुलाना
जानते हों,
वतन के लिए जो जीना मर जाना
जानते हों,
साथ मेरे वो ही चलें जो
दर्द-ए-सदर में भी मुस्कुराना जानते हों
हमसफर को ही सफर बनाना
जानते हों,
राहों की मुश्किल को अपनाना
जानते हों,
सूरज चाँद तारों को तोड़ लाना
जानते हों,
साथ मेरे वो ही चलें जो
दर्द-ए-सदर में भी मुस्कुराना जानते हों
खुशी में रोना गम में जश्न मनाना
जानते हों,
हर मुश्किल को रास्ता बनाना
जानते हों,
आधे इश्क़ को पूरा निभाना
जानते हों,
साथ मेरे वो ही चलें जो
दर्द-ए-सदर में भी मुस्कुराना जानते हों
अदब की महफिलें लगाना
जानते हों,
ज़िंदगी को गज़ल बनाना
जानते हों,
अधूरी नज़्म को भी खुले दिल से अपनाना
जानते हों,
साथ मेरे वो ही चलें जो
भीड़ से बगावत कर सकें
हैवानों को हैवानियत से डरे बिन
फरिश्तों का साथ निभाना
जानते हों,
दर्द-ए-शहर को खाख करना,
जानते हों ।