सार्थकता
सार्थकता
भगवान की हर कृति
अपने आप में अद्भुत
पुरूष व नारी
दुनियाँ का चलन
दोनों की जोड़ी
खिलता घर आँगन
पर दोनों एक दूजे से भिन्न
इक दूजे से अलग
पर घर चले
दोनों के संग।
पति समुद्र
पत्नी उसमें तैरता घड़ा
औरत रूपी घड़ा
भावनाओं से लबालब
जब तक कच्चा
किसी भी रूप में ढालो
उसी रूप में ढला ।
अपनी भावनाओं को दबा
दूसरों के लिए रंगा
कुदरत का करिश्मा
घड़ा पककर अड़ा
औरत रूप और भी ढला ।
बेटी, बहन ,पत्नी, माँ ,
ननद ,भाभी ,दादी, नानी
हर रूप की भावना अलग
पूरी कितनी हुई पता नहीं
पर दबी अनगिनत ।
हर बार अपने से पहले
दूसरों पर लुटा।
सबकी भावनाओं का रख ख्याल
अपनी को बहाव के साथ दिया बहा।
वाह री किस्मत!
भावनाओं से लबलबाती
सबकी प्यास बुझा
खुद के लिए तरसा
ये औरत रूपी घड़ा।
पर .....
इन सब के बावजूद
पुरूष का हो सही साथ
तो भवसागर पार
हासिल हर मुकाम
जीवन सार्थक ।