साल पुराना
साल पुराना
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जब बदल रहा था
साल पुराना
दस्तक हुई थी नए साल की
अकल्पनीय लगती थी सब कुछ
अंदाजा नहीं था अपने हाल का
दिन लेगी ऐसा आकार
मच जाएगी चीख पुकार
लोग बेबस थे मजबूर थे
अपनो से हुए दूर थे
वो कैसा साल था उस बार
जिंदगी जंग गई थी हार
ये खुदा की कैसी माया
कैसी खेल रचाई थी
या षडयंत्र ये गैर मुल्क का
जहां से ये मुसीबत आई थी।।।