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डॉ. रंजना वर्मा

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डॉ. रंजना वर्मा

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ऋतुपति का यह रूप

ऋतुपति का यह रूप

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सरसों फूली खेत में , विहँस उठा कचनार ,

मुक्त हस्त है बाँटती , धरती अपना प्यार ।

लगे आम्र पर बौर , टेर चातक की प्यारी ,

रही बाग में गूँज , कोकिला की कुहकारी ।

ऋतुपति का यह रूप , सरसता आया बरसों ,

हरियाली सब ओर , झूमती पीली सरसों ।।


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