ऋतुपति का यह रूप
ऋतुपति का यह रूप
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सरसों फूली खेत में , विहँस उठा कचनार ,
मुक्त हस्त है बाँटती , धरती अपना प्यार ।
लगे आम्र पर बौर , टेर चातक की प्यारी ,
रही बाग में गूँज , कोकिला की कुहकारी ।
ऋतुपति का यह रूप , सरसता आया बरसों ,
हरियाली सब ओर , झूमती पीली सरसों ।।
