बड़ चली है झूमती नाचती नशीली सी अर्थ व्यवस्था। बड़ चली है झूमती नाचती नशीली सी अर्थ व्यवस्था।
सरसों फूली खेत में , विहँस उठा कचनार , मुक्त हस्त है बाँटती , धरती अपना प्यार । लगे आ सरसों फूली खेत में , विहँस उठा कचनार , मुक्त हस्त है बाँटती , धरती अपना प्यार...