रिश्तों का अंत
रिश्तों का अंत
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सच अक्सर
दिल को चुभ
जाता है
और आँखों से
निथर जाता है
झूठ दिल को
भा जाता है
और होठों पे
मुस्कान छोड़
जाता है
जब झूठ सामने
आता है तो सारी
मुस्कान क्रोध
की ज्वाला में
बदल जाती है
रिश्ते की मिठास
कड़वाहट का घूट
पी जाती है
और कड़वाहट
रिश्तों की
मधुरता को कड़वे
जहर में परिवर्तित
कर जाती है
जो रिश्तों का अंत
कर देती है