रिश्ते जीवन की मिठास
रिश्ते जीवन की मिठास
मन के कोने में रखी वो पोटली
आज फिर खुल सी गई साँसें थी
धड़कन थी ज़िन्दा थी वो पोटली ।
मर्म था संवेदना थी कहीं कुछ नाराज़गी थी
नमी सी थी रूखापन भी था गुस्सा था मनुहार था
क्या कहूँ उस कोने में रिश्तों का प्यारा संसार था ।
मन को उसनें सहला दिया बहुत कुछ सुना दिया
दूर हुऐ प्यारे रिश्तों को कितना क़रीब ला दिया
छोटे छोटे से लम्हें को आज फिर मुझे जी ला दिया ।
मैं सिहर उठी मैं बिखर उठी मैं साथ फिर लिपट गई
बहुत प्यार आज फिर किया मेरा मन भिगो दिया
ये पोटली थी प्यार की मेरे रिश्तों के संसार की ।
फिर बाहर दुनियाँ पर नज़र मेरी ज़रा पड़ी
आज नफ़रतों का संसार था द्वेष ईर्ष्या ही दिख रही
प्रेम रिश्तों का ना कोई काम था
रिश्तों का व्यापार था न मन से कोई पास था ।
मैं पोटली से कह उठी अब वो संवेदना कहाँ गई
वेदना किसी की देख संवेदना क्यूँ मर गई
मेरी पोटली गले लगी सहलाने बस मुझे लगी ।
मैं फिर कुछ न कह सकी स्पर्श उन अंगुलियों का
बस प्यार प्यार दिखाता रहा थी मौन वो पोटली भी
बस रिश्ते प्यार के अब पास थे नफ़रत का न नाम था।