रब उस पतंग की खैर करे
रब उस पतंग की खैर करे
रब उस पतंग की खैर करे,
जो गले लगा के बैर करे!
नभ को छूने की आस लिए,
एक उमंग भरा एहसास लिए,
खुद को खुद में जीना चाहे,
हर ज़ख्म को वो सीना चाहे,
फिर बाँह फैला वो पास आया,
ले के आगोश में मुस्काया,
फिर गिरा के उसे धरातल पे,
खुद आसमान की सैर करे,
रब उस पतंग की खैर करे,
जो गले लगा के बैर करे!
आँखों में अंधेरा अमावस का,
नैन मोल नहीं तेरे पावस का,
रिश्तों में लकीरें खींच गये,
आँखों को लहू से सिंच गये,
वो खुश हैं डोरी उलझा के,
हम थक से गये सुल सुलझा के,
बस चाह थी दिल इतनी सी,
वो घर को मेरे दैर करे,
रब उस पतंग की खैर करे,
जो गले लगा के बैर करे!
जब टूटे डोर विश्वासों की,
घूट जाये दम एहसासों की,
आँखें पलकों में नीर लिए,
दिल जख्मों की पीर लिए,
फिर दिल खुद को समझाये,
समझाये बस समझाये कि,
उसके लिए भी क्या रोना,
जो अपनों को गैर करे,
रब उस पतंग की खैर करे,
जो गले लगा के बैर करे,
जो गले लगा के बैर करे!
