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Harshita Jain

Others

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रात्रि -गीत

रात्रि -गीत

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एक दिन अचानक यूं ही एक ख्याल आया,

कि रात पर अब तक कोई क्यों न लिख पाया

क्या इसलिए कि वह शांत है ,या इसलिए कि वह निशांत है।

कलम चलाने वाले अक्सर ये भूल जाते हैं 

कि कलम के कमाल तो रात में ही हो पाते हैं ।

लिखा होगा बहुतों ने पेड़ पर,पत्तियों पर,जंगल पर ,

डाली पर,कोपल पर या वनमाली पर ,

किन्तु रात पर कोई क्यों न लिख पाया?

सुना होगा बहुतों ने चिड़िया पर,मरूधरा पर,बहती हुई जल की धारा पर,

पर कानों में कोई रात्रिचर का गीत न गुनगुना पाया

गीत गुनगुनाता राही भी दिन में सुकुन पाता है।

रात तो बस सुनसान है,अपने अस्तित्व पर हैरान है,

अपनी निश्चितता व वास्तविकता से अनजान है।

हे महान गुप्त व निराला , रचा दो रात्रि पर ऐसी

कोई 'मधुशाला 'कि रिक्त न रह जाए किसी निशाचर का प्याला ।


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