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निशान्त मिश्र

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निशान्त मिश्र

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"राष्ट्रभाषा की पीड़ा"

"राष्ट्रभाषा की पीड़ा"

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"राष्ट्रभाषा की पीड़ा"


चन्द्र शीश धरि "राम- हरि"

हृदय अयोध्या "औध"

भाल विभूषित "मैथिली"

देवनागरी पौध।


हर भाषा का आभूषण है

हर कृति की है अभिलाषा

देवनागरी लिपि है जिसकी

हिंदी है जन की भाषा।


शब्द दिए जिसने पुष्पों को

मधुशाला को प्राण दिए

जिस भाषा में अमर हुई

झांसी की गौरव गाथा।


हिंदी हमारा मान है

हिंदी से हिन्दुस्तान है

हिंदी में स्वाभिमान है

हिंदी से ही सम्मान है।


हिंदी से ही पहचान है

हिंदी में ही उत्थान है

हिंदी ह्रदय की वेदना

संवेदना का गान है।


हिंदी परन्तु बन गई

दुर्भाषियों की पीड़िता

मातृत्व में ही सह गई

दुत्कार की अभिसप्तता।


हिंदी विभेदन को खड़े

हुंकारते से श्वान हैं

हिंदी पलायन में खुलें

नित नए श्मशान हैं।


हिंदी के अपने पुत्र ही

हिंदी का विच्छेदन करें

उपभाष्य में रस ढूंढते

अपभाष्य में हर्षित रहें।


है सरल, सर्वोपयुक्त है

निश्चय ही अंचल को भजें

किंतु कदाचित भी नहीं

निज राष्ट्रभाषा को तजें।


है उचित, अर्जन ज्ञान को

हर भाष्य का सम्मान हो

किंतु ह्रदय में सन्निहित

हिंदी सदा अभिमान हो।


...... निशान्त मिश्र


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