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Dhirendra Panchal

Others

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Dhirendra Panchal

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राफेल की परिचर्चा

राफेल की परिचर्चा

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राफ़ेल की परिचर्चा में वो चर्चा हमने भुला दिया।

डाँट ग़रीबी को हमने भी भूखे तन ही सुला दिया।


पेट के भीतर जलती रहती अंगारे अभिमान में।

जैसे दिन भर अग्नि जलती रहती है शमशान में।


हुई जीत कांग्रेस की चाहे गई बीजेपी हार।

भात बिना भारत का देखो रुका रक्त संचार।


हम क्या जाने योगी, मोदी, सोनिया मैडम कौन हैं।

रोटी पर परिचर्चा करने वाले मंत्री मौन हैं।


लाचारी का उसके नेता पूछ रहे थे जात।

अंतिम इच्छा उसकी केवल माँग रही थी भात।


शोर हुए चहुँ ओर देश में बजे सियासी झाल।

उसकी सुनी छाती का ना पूछे कोई हाल।


जिस भारत की अंगड़ाई में तड़प रहे नवजात।

चीन की छोटी आँख पूछती मोदी की औक़ात।


चुटकी लेती इतराती हैं मुग़लों की शमशिरें।

दिया सियासी घाव ग़जब की मोदी की तक़दीरें।


इठलाती चलती हैं देखो ख़िलजी की तलवारें।

हमको उड़ना सिखलाती हैं जापानी हथियारें।


केवल हमको राष्ट्रहित प्रतिशोध सिखाया जाता है।

संसद वाले साँपों को भी दूध पिलाया जाता है।


कर बद्ध निवेदन है मेरा उन मत और मतदाताओं से।

दूध पिलाने वाला हक़ ना छीन लेना माताओं से।



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