राहें नयी नयी सी
राहें नयी नयी सी
चयन ये करना तुम्हें कि,
कुछ करो चिंतन मनन,
तुम भी पुरानी राह चलोगे,
या करोगे नव सृजन।
भीड़ के ही साथ में,
तुम भीड़ में खो जाओगे,
या पाथ निर्मित कर नया,
प्रणेता स्वयं बन जाओगे।
नयी-नयी इन राहों में,
कुछ मुश्किलें भी आएंगी,
अनुभव नहीं होंगे पुराने,
राह भी भरमाएँगी।
और कभी कुछ लोग तुम पर,
हँसेंगे कह जाएंगे,
सफलता नहीं सम्भव यहां,
ये तंज वो दे जाएंगे।
तब तुम्हें ख़ुद से संभलकर,
राह में बढ़ना पड़ेगा,
व्यंग्य के दो घूंट पीकर,
अपमान भी सहना पड़ेगा।
ढूँढने तुमको पड़ेंगे,
मील के पत्थर स्वयं,
और तज चलना पड़ेगा,
भ्रम में गूंथित अहम।
विश्वास ख़ुद पर ही बनेगा,
राह का संबल सदा,
पदचिह्न कोई ना मिलेंगे,
ख़ुद ही चुनना रास्ता।
भटकते-भटकते सही,
एक दिन तुम्हें मिल जाएगी,
मंज़िल तुम्हारी ख़ुद तुम्हारे,
पास चलकर आएगी।
अनुभव तुम्हारे तब नए,
उदाहरण एक बन जाएंगे,
और भीड़ को वो एक नया,
सन्मार्ग सा दे जाएंगे।।
