राग कोरोना
राग कोरोना
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कितने राग बैराग हो गए
संगीत में रह गई सिर्फ करूणा।
प्रकृति कितनी बार दिखलाती
ऐ इन्सान तू है कितना बौना।
कहाँ मानता फिर भी हूँ मैं
ढूंढता हूँ हर गोले का कोना।
शहरों का शहंशाह,
नहीं हूँ राजा जंगल का भी
चाहता हूँ जीत आसमां जाना।
इसे कह ले चाहे कोई खटराग पर
इसी उम्मीद से हारेगा कोरोना।
