राधा- कृष्ण प्रेम
राधा- कृष्ण प्रेम
कान्हा झूला झूलत तू मेरे नैन समाया
ओढ़ पीतांबरी सबके मन को भाया l
सलोने सिर पर तेरे मोर मुकुट है सोहे
तेरी अँखियाँ मेरो मन ना बिसरावे l
मोहन तेरी बाँसुरी के भाग जागे
अधरों पर सज तेरी साँसों का सुख पावे l
राधा की पाजेब भी ना अब बजती है
तेरे वियोग में वे मन की ना कहती है l
कान्हा योग ना जानूँ वियोग न जानूँ
तेरे जीवन के लुका छिपी खेल ना जानूँ l
याद आवे यमुना तट का खेल निराला
स्वप्न में भी नाचूँ तेरी मुरली धर गोपाला।
मोहे नींद न आवे जागूँ मैं दिन रैन
एकाकी जीवन पावे कबहुँ न चैन l
तेरे बिन सूनी है मेरी जिंदगानी
साँवरे तेरी बाट जोहैं राधा रानी l
नाम जपूँ तेरा साँवरे मैं तो सुबह - शाम
अब तो मोहे दर्शन दो घनश्याम l
