राधा की विरह
राधा की विरह
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हे परमात्मा,
मुझे अकेले छोडकर ब्रज से चले गये हो
मै जो कुछ लिखती हूँ, वो एक एक पारिजात कुसुम है
मै तुम्हारे लिए अक्षरों का पारिजात फूलों की माला हाथ में पकडकर इंतजार करती हूँ, हे परमात्मा एक बार
आकर मुझे दर्शन दे दो।
