???प्यारा? चश्मा
???प्यारा? चश्मा
टिका नाक पर, या कान पर?
कोई नहीं बताता।
चश्मा पहने हर बच्चा ,
साइंटिस्ट मुझे नज़र आता।
कई बार जिद्द की चश्मा बनवाने की,
आवाज़ बन जाती मेरी
तूती नक्कारखाने की।
एक दिन उपजाऊ दिमाग़ में मेरे,
यह आइडिया आया।
स्कूल से आने के बाद ,
हर रोज़ सर दर्द बताया।
यूं करते करते महीना जब बीता
घरवालों ने अस्पताल का चक्कर लगवाया।
आते जाते मरीजो को देखा दिन भर,
शाम को नंबर आया।
बेटा देखो आखिरी लाइन को
पढ कर बतलाओ।
पढ कर जब बतलाया ,
चश्मे का नंबर ज़ीरो आया।
साइंटिस्ट न बन पाने का मलाल लिए
आगे बढते रहे हर साल ।
तब आया उम्र का प्यारा चालीसवां साल।
जब पहला चश्मा बनवाया,
इसे लगाने, संभालने में जतन कितने,
अब समझ में आया।
