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Mayank Kumar

Others

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Mayank Kumar

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पुरानी यादें

पुरानी यादें

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अतीत के दिन भी गज़ब थे

चिट्ठी, मनी ऑर्डर तथा टेलीग्राम

यह सब अपने साथी हुआ करते थे

परिवार से दूर रहकर भी,

हम दिलो जान से उनके साथ

जुड़े रहते थे

इन्हीं सब के दम पर हम खुश

रहा करते थे !


पर, ये सब अब अतीत में कहीं

खो गए


अपनी प्रेमिका को खत भेजना,

टेलीग्राम भेजना

तथा खत के इंतजार में,

डाक घर के चक्कर काटना,

तथा डाकिया से यह पूछना कि-

हमारी खत आपको प्राप्त हुई क्या ?

तथा डाकिया द्वारा मुस्कुरा कर

यह कह देना-

अभी तक तो नहीं महोदय !

और इतना सुनते ही,

अगले सुबह की ताक में

इंतजार के बिस्तर पर सोना,

करवटें बदलना !

मन ही मन गुदगुदाना,

कभी खुश होना

तो, कभी चिंतित होना

प्रेमिका की सलामती संग

माँ-बाप, ताऊ के लिए दुआ

करना।


पर, ये सब अब अतीत में ही

कहीं खो गए


क्या दिन थे उस दौर में

जब लोग थोड़ा गाँव में

रहा करते थे, अपनों के बीच में

शहर में रहते हुए भी,

मन ही मन में

एक गाँव को जिया करते थे !


पर, ये सब अब अतीत में ही

कहीं खो गए


कुछ इंतजार के घोसले चेहरे पर,

जैसे ही लटकते थे, अपनों की

चिंता में

तभी डाकिया का दरवाज़ा

खटखटाना तथा यह कहना कि-

श्रीमान ! आपकी दुआ कबूल हुई।

तथा डाकिया द्वारा,

गर्मजोशी के साथ हाथों को

पकड़कर

ख़त को भावुकता के साथ

सौंप देना !


पर, ये सब अब अतीत में ही

कहीं खो गए


डाकिया द्वारा खत को सौंपते ही

सभी काम छोड़कर,

बस खत के साथ कहीं खो जाना

तथा खत पढ़ते ही

भावुकता से रो पड़ना

तो, कभी जोर से हँस पड़ना

क्या दौर था उस वक़्त का !


पर, ये सब अब अतीत में ही

कहीं खो गए


जहाँ अनगिनत परिवारों के संग

हम सब जीते भी थे, साथ मरते भी थे

विचारों का आदान-प्रदान मिलजुलकर

मधुरता से सभी आपस में करते भी थे

माँ-बाप को ही अपना संसार, हम

सब समझते भी थे !


पर,ये सब अब अतीत में ही

कहीं खो गए हैं


आज के डिजिटल माहौल में

हम सब भूल सा चुके हैं

वास्तविक भारतीय संस्कृति !

वास्तविक संसार छोड़कर,

बनावटी संसार में हम सब

उलझे हैं।


सोशल मीडिया को जीवन समझ

रोज हजार मन के आवाज़ को,

क़ुर्बान करके

हजार महत्वाकांक्षी लोगों के

बीच घिरे हैं !!


इसलिए हम कह सकते हैं-

हमारी पुरानी यादों को, अनगिनत

वादों को

हम सब कहीं ना कहीं अतीत में

ही खो दिए हैं ! ! !



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