पुनर्जन्म
पुनर्जन्म
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
1 min
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
334
अर्सा हुआ कुछ लिखे हुए..
बातें तो वैसे थीं बहुत सी,
कहना भी उन्हें चाहा था…
कुछ सिलसिला बना नहीं!
घटनाएँ आदतन घटती रहीं
दुखों ने बराबर साथ दिया,
उम्मीद ने दामन बचाए रखा
सुखों ने सीखी वफ़ा नहीं…!
मेरे साथ ही तो थी तन्हाई
दिल की भी आँखें नम थीं,
वजह भी क्या कुछ कम थीं
फिर क्या हुआ – पता नहीं!
पर आज क़रीब पाकर तुम्हें
कुछ लिखने को जी चाहा है,
लिया है एक जन्म प्रेरणा ने
जिसकी कमी थी शायद कहीं!
तुम मिल तो मुझे गयी हो…
पर खो भी ज़रूर जाओगी!
तो अभी लिखूँ या इंतज़ार करूँ
उस प्रेरणा का जो जन्मी नहीं?!