पुण्यतिथि
पुण्यतिथि
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खुले आकाश के परे
अनंत विस्तार पा
कहीं हो विलीन
हो चर अचर से परे
कहीं भी रहो तुम
ढूंढती होगी
अपना संसार।
तुम्हारी ही आशीषों
से भरा है तुम्हारा परिवार
दूर कहाँ हो तुम
हृदय में भीतर तक समाई
आदर्शो और कृत्यों में
आत्मसात किये
पल पल पास में।
कितना समेट पाई मैं
कितना सहेज पाई मैं
कौन ये बताये
अथक प्रयास किया
तुम तो जानती हो ना माँ
रह गई तुम्हारी
अभिलाषाएँ अधूरी।
सोच कसक उठता मन
भरे दिल से सादर नमन
देती रहना आशीर्वचन।