पत्नी परीक्षा
पत्नी परीक्षा
जीवन भर करूँ, पराया होने की प्रतीक्षा
फिर भी मेरी ही क्यों होती अग्नि परीक्षा
माना नारी हूँ, तुम्हारी नजर में बेचारी हूँ
विवाहोपरांत भी पूछते क्या मैं कुँवारी हूँ
गुरेज़ नहीं किसी परीक्षा से सदा तैयार मैं
सफल होकर भी असफल, क्यों गद्दार मैं
मनचाहा कसते हो मुझे तुम कसौटी पर
फिर क्यों ताना साथ परोसते हो रोटी पर
कोई कहे कुछ, हो सचमुच ये तो बात नहीं
विपत्ति में ही क्यों हाथ तेरा मेरे साथ नहीं
जब जैसा तेरा मन करे वैसा मेरा तन करे
तो क्यों अकेला मेरा दिल खामियाजा भरे
सब संग तेरे काटूँ, दिन-रैन, सुख-चैन बाँटूं
दूरी दरमियाँ दिलों के क्यों मैं अकेली पाटूँ
फ़िक्र है इस बात की, कि लोग कहेंगे क्या
जब मैं न रहूँगी संग तेरे तो लोग रहेंगे क्या
पाक हूँ मैं साफ़ ये कोई आग कहेगी क्या
आग साक्षी हो खुद रिश्ते की कहेगी क्या
सात फेरों की अग्नि से पवित्र आग न कोई
इस आग से भी बच जाए ऐसा दाग न कोई
सबसे पतला व मजबूत धागा है विश्वास का
पल दो पल नहीं ये रिश्ता है अंतिम श्वास का
