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Sujata Kale

Others

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Sujata Kale

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पतझड़़

पतझड़़

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मैंने देखा,

पतझड़ में

झड़ते हैं पत्ते,

और

फल - फूल भी

छोड़ देते हैं साथ।

बचा रहता है

सिर्फ ठूँस

किसलय की

बाट जोहते हुए।


मैंने देखा

उसी ठूँठ पर

एक घोंसला

गौरैया का,

और सुनी

उसके बच्चों की,

चहचहाट साँझ की।

ठूँठ पर भी

बसेरा और,

जीवन बढ़ते

मैंने देखा

पतझड़ में ।


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