पता ना चला
पता ना चला
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जिन्दगी की सीढियाँ, चढ़ते चढ़ते अकेलापन,
कब मुझे अपने लपेट में ले लिया,
पता ना चला । ।
अपनापन का अहसास, कब पीछे छूट गया,
और कब तन्हाई ने मुझे आगोश में ले लिया,
पता ना चला । ।
बहुत दूर तक सुख, मेरा दामन पकड़ कर चल रहा था,
पर ना जाने कब आँसुओं के बारिश ने, दामन मेरा भीगो दिया,
पता ना चला । ।
