प्रयोगात्मक गृह विज्ञान
प्रयोगात्मक गृह विज्ञान
अपने स्कूल के दिन तो हर कोई याद करता है वो पढ़ने का मन और स्कूल जाने का मन अब करता है जो शायद स्कूल जाने के समय पर नहीं था।और मैं तो कहती हूं कि क्यों न मैं एक दो साल फेल हो गई होती और कभी तो ये सोचती कि आर्ट्स से बारहवीं करने के बाद दुबारा से साइंस से दो कक्षा और पढ़ लूं।मेरा विषय कभी गृह विज्ञान नहीं रहा किंतु मुझे गृह विज्ञान के बारे में आधी जानकारी है और यहां में अपनी एक सहपाठी की स्कूल के समय की बातें बताने जा रही हूं जो आज मुझसे कहती हैं कि वो पल वो दिन हम फिर से दोहरा सकते हैं
हमारे कुछ विषय होते हैंं जिनमें में हमें परीक्षा के साथ साथ कुछ अंक की प्रयोगात्मक गतिविधियां करनी होती है,जैसे अलग सी कोई फाइल चार्ट पर किसी क्रिया को विस्तारित रूप से दिखाना या कोई विशेष मॉडल तैयार करना। इसी तरह गृृह विज्ञान एक ऐसा विषय था जिसमेें गृह पाक कला गृह गणित कढ़ाई बुनाई इत्यादि की डिजाइन बनाना सिखाया जाता था। यह विषय मुुख्य रूप में लड़कियों के लिए होता था, जहां लड़कियां बहुुुत निपुण बन जाती हैं गृह शिक्षा में।और अपनी कलाओं का बाद में भी उचित उपयोग कर प्रशंसाा की पात्र बनती हैं।
हम दसवीं में थे अर्धवार्षिक परीक्षाएं चल रही थी मैं और मेरी सहपाठी रोज साथ आतेे जाते स्कूल और परीक्षाओं में सारेे विषय समान थे बस एक गृह विज्ञान में वो और मैंं अलग होते थे।उसका गृह विज्ञान का प्रयोगात्मक था और मेरी छुट्टी थी प्रयोगात्मक में उन लोगों को पाक कला का प्रदर्शन दिखाना होता था। जिसमें पकोड़ेे, गाजर का हलवा,छोलेे इन्हीं सब का मुख्य प्रदर्शन था।अगलेे दिन जब हम साथ में स्कूल गए तो उसने मुझे आधे रास्तेेे में रोका और कहा की उसने मेरे लिए कुछ रखा है। मैंं रुक गई और उसे देखने लगी , और उसनेे वो काफी सामान वहां से निकाला जहां उसने पहलेेेेेे दिन छुपा रखा था, वह प्ररायोगात्मक का कुछ कच्चा समान था ।और उसने अपनी बाकी सहेलियों को बुलाया था उस दिन उन्हें स्कूल नहीं था किंतुु वह सब घर से स्कूूल जाने का झूठा बहाना बनाकर येेेे योजना बनाकर आई थी कि वह उस समान से बीच रास्तेे में कहीं पकवान इत्यादि बनाएंगी।और मुझसे कहा गया कि मैं अपना स्कूल जाकर अपनी परीक्षा समाप्त्त करके शीघ्र वापस स्थान पर मिलूं जहां उन्होंने योजना केे अनुसार निर्धारित किया था।और मेरी भी इस दिन अंतिम परीक्षा का दिन था,और मैंने हां कर दी और उस दिन के जितना मैंने अब तक ऐसा लम्हा नहीं जिया है और न ही उतने पकवान खा पाई हूं,और आज जब बारे में बात होती हैैैै तो वह बताती हैं कि यह सब वह बहुुुत समय पहलेे से करते आ रहे थे।
