पर्यावरण और हम
पर्यावरण और हम
भागती दौड़ती ज़िन्दगी
जो कभी नहीं थमती थी,
ऑफिस से घर, फिर
घर से ऑफिस बस
इतनी ही दूरी रोज़
नापनी होती थी,
वहीं ट्रैफिक,
वही रोज़ ऑफिस जल्दी
पहुंचने की सनक थी,
कही दूर चिमनियों से निकलता धुंआ,
और लाखों की संख्या में दौड़ती
गाडियां सड़कों पर
करती मेरे शहर को प्रदूषित थी।
आज लॉक डॉउन में बहुत शांत है ज़िन्दगी
ना कहीं भागने की दौड़
ना किसी से आगे निकलने की होड़ है,
वर्क फ्रॉम होम करने से
मेरे शहर को बड़ा आराम है,
सड़कें सुनसान हैं मगर
हर रोज़ भागने वाली गाड़ी को
मिल रहा बड़ा आराम है,
घर के बाहर ठंडी हवाएं
नए वातावरण में मुस्कुरा रही हैं,
काले धुएं का अभी कुछ अता - पता नहीं
सुना है गंगा - यमुना भी साफ होने लगी है,
अब दूर से ही हिमालय की चोटियां
दिखने लगी हैं,
प्रकृति हमारी नाचने गाने लगी
हमारे बिना ही जश्न मनाने लगी है।
