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Dinesh paliwal

Others

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Dinesh paliwal

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प्रवक्ता

प्रवक्ता

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आज एक टीवी डिबेट में,

प्रवक्ता जी आ गये लपेट में,

मुँह से ना वाणी फुटती थी ,

जिव्हा रह रह कर रुकती थी ,

जो मन का था ना कह पाते ,

बस वो पार्टी की सलीब उठाते  ,

जिसको मसीहा खुद का कहते,

वो बस घर के अंदर थे रहते ,

ये पार्टी के वफादार प्रवक्ता ठहरे ,

सो हर कील बदन पर अपने सहते ,

मन में कितना अंतर्द्वंद भरा था ,

एक एक घाव वैसा ही हरा था ,

कल तक जो पार्टी पीतल थी ,

बदली निष्ठा अब वो स्वर्ण खरा था ,

कोई थाली का बैंगन था कहता ,

कोई करता गिरगिट से तुलना ,

कालिख कैसे पोंछे वो मुँह से ,

जब स्वीकारा स्याही से धुलना ,

हर सवाल का अब उनका बस ,

उत्तर बिल्कुल विपरीत हुआ है ,

कल तक रहे अभिव्यक्ति के पुजारी ,

मौन आज क्यों इष्ट हुआ है ,

धर्मनिरपेक्षता का भी अब उनका ,

पैमाना नाप का मचल गया है ,

कल तक जो था वंचित को पोषण ,

अब तुष्टीकरण में बदल गया है ,

कल तक संवाद सराहते थे जो ,

असहिष्णु आज क्यों हो जाते हैं ,

जिनको कल तक धिक्कारा हरदम ,

अब उनके ही पक्ष खङे पाते हैं ,

जो राष्ट्रवाद ना लगता उनको ,

वो राष्ट्रद्रोह परिभाषित होता ,

कुर्सी के इस हेर-फेर में बस ,

हर शब्द अर्थ अब अपना खोता ,

निष्ठा जब बिकती सत्ता पर ,

तब तब ही है ऐसा होता ,

आज काटता दलहन है वो ,

जो कल तक रहा धान था बोता ,

विचारधारा से है हो गया किनारा ,

सूद लगे अब असल से प्यारा ,

चिङाता है आईना भी रह रह के ,

प्रवक्ता जी जो धरा रूप ये न्यारा ,

प्रवक्ता जी जो धरा रूप ये न्यारा ।।


 


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