परिवार

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चार दीवारों को जोड़ कर 

बनाया एक आशियाना 

प्यारा सा

रहते उसमें --चार जीव 

रहता था उसमें एक प्राणी 

जो, ले कर आया संग अपने 

बना कर उसे, जीवन -साथी 

आशियाना धन्य हुआ अपने पर 

क्योंकि, सूनापन दूर हुआ उसका 

समय बीतता गया


फूल खिला वहाँ पर एक दिन 

किरदार बदल गये अब उनके 

एक बन गया पिता और 

एक बन गई माँ 

उस नन्हे फूल के

जो तुषार वृन्द सा

धवल चंचल 

बेटा समान रत्न आया 

जीवन के उपवन में

समय गुजरता गया


आशियाने को गुंजायमान

करने को 

आ गई एक रजत धवल सी 

आई नन्ही एक परी 

बेटी बन तृप्त किया उसने 

अब,

आशियाना धन्य हो गया

क्योंकि 

उसे मिला ख़ुशियों से

भरा पूरा परिवार


 


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