परग्रहियों का प्रयास
परग्रहियों का प्रयास
सर्वे भवन्तु सुखिन: का भाव है,
पावन सनातन आर्य संस्कृति का।
कल्याण की चाहत जड़-चेतन की,
और रक्षण- संरक्षण सारी प्रकृति का।
मालिक ब्रह्म है ब्रह्माण्ड सकल का,
सदा सबके हित का चिंतन करता है।
प्राणी तो किसी भी ग्रह का वासी हो,
सबका ही कल्याण तो वह करता है।
उड़न तश्तरी से कभी कई परग्रही भी,
अपनी इस प्यारी वसुधा पर आते हैं।
न जाने क्यों कुछ चीजों को वे अपने,
साथ में किस उद्देश्य से ले ही जाते हैं।
पूजनीय हैं धरा धेनु ,ये तो अपनी माता हैं ,
इनके संरक्षण से ही निज रक्षण हो पाता है।
निज यान में गो माता को ले जाने का लगता,
इनका हमें यह प्रयास नजर सा ही आता है।
आदिकाल से अब तक ही गोवंश मनुज का ,
पालन-पोषण कर कल्याण ही करता आया है।
निज अल्पज्ञान के ही मद में होकर चूर मनुज ने,
इनसे भटका निज ध्यान शाप प्रकृति का पाया है।
बिसरा दी हमने कल्याणकारी प्रकृति गो माता की,
हमें लगता है इन कुछ परिग्रहियों ने तो पहचानी है।
उद्धार और कल्याण हेतु अपने ग्रह पर माता को,
ले जाने की योजना कहती चित्रित यह कहानी है।