प्रेरणा
प्रेरणा
1 min
433
अम्बर !
तुम कितने विशाल हो ,
जो सूर्य की तपिश को
ऊष्ण भाप को
अपने में समेट लेते हो,
और फिर उसे शीतलता में बदलकर
धरती पर बरसा देते हो।
अम्बर,
तुम कितने उदार हो ।
अम्बर!
तुम मेरी अभिलाषा बन जाओ
ताकि मैं भी तुम्हारी तरह
सबके गम दुख अपने में समेट सकूं,
और फिर उसे
आशा और सुख में बदलकर
सब में बाँट सकूं।
अम्बर!
तुम मेरी प्रेरणा बन जाओ।
