प्रेम ...
प्रेम ...
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वो कहते हैं..
मोहब्बत की कविताएँ
लिखने-पढने की भी
एक उम्र होती है..
तो जरा बताइए जनाब.. किस उम्र में..
मोहब्बत बे-जरूरत
बन जाती है
वह कौन सा पड़ाव है
जीवन का...
जो बिना प्रेम..
बिना मोहब्बत..
बिना अपनेपन के
जी सकता है जिंदगी!
हथेली भर बच्चा भी, मोहब्बत से पलता है..
प्रेम से बढ़ता है
और...
बिना दांत का,
झुर्रियों से भरा चेहरा भी,
मोहब्बत से जीता है..
प्रेम से पलता है...
प्रेम पर...
युवा दिलों का हक!
किसने चस्पा कर दिया भला!
कौन है वह शख्स?
जो मोहब्बत को बंधनों में
बाँधता है...