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नीलम पारीक

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नीलम पारीक

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प्रेम रात का

प्रेम रात का

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प्रेम रात

का चाँद से

कब से जाने

तब से शायद

जब से चमके

नील गगन में


तारों के संग

उजला चाँद

अमृत सा

बरसाता चाँद

जाने कैसी

प्यास प्रेम की

बढ़ती जाती

नित्य निरन्तर


न ये बुझी है

नहीं बुझेगी

प्रेम क्षुधा है

अगन नहीं है


चाँद के संग

खेले अठखेली

हर दिन है

इनका मधुमास

चाँद पिया का प्रेम

हो ज्यूँ यूँ

अंजुरी भर-भर

पिये उजास...



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