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Awadhesh Singh

Others

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Awadhesh Singh

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प्रेम एक व्यंग्य

प्रेम एक व्यंग्य

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वो आई पास यूँ मेरे

गोरा मुख इतरा इतरा कर

ओढ़नी नीला चुनर से

टॉप का था वो शर्ट हरा।


नैनो में भाव कामिनी के

और लज्जा भी है जरा जरा।

जीन्स वो देह पे

कसी हो ज्यूँ बेल पे तना

उस पर रंग गोरा चढ़ा के

किया हो ज्यूँ ड्राई क्लीन खरा खरा।


वो आई पास यूँ मेरे

बन कर कोई अप्सरा, पर

यौवन से लदे हुए ज्यूँ

पुष्प वाटिका में गुलाब हो बिखरा।


पूछ बैठा मैं यूँ ही उससे, क्या वादा है तेरा

मुझको भी बता जरा?

बोली ले चलो मुझको बाज़ार में

दिखला दो फ़िल्म जरा।


यही तो जीवन की बहार

नहीं जानते तुम प्रिय

खाओ और मौज मनाओ

इसे ही कहते हैं प्यार।


मैं बावरा निखरा हीरा

खरा है मेरा प्रेम ब्यवहार

कहा से लाऊँ सोना चाँदी

कैसे लाऊँ प्रिय हार।


नहीं चाहिए तेरा मुझको

फीका ये प्रेम उपहार

मैं खिलौना तो नहीं

जो मिल जाये बाज़ार।


प्रेम के बदल प्रेम ले,

मतकर ये विचार

चाहने वाले होंगे तेरे

जीवन में कई और।


खोने वाले मिलेंगे कहां हर बार

जीवन के दिन है चार

मत तोल इसे भौतिक चाह में

खरा सोना है मेरा प्यार

जीवन के दिन हैं चार।



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