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परदेस

परदेस

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परदेस में मुझे याद आये अपना ज़मीं-आसमां

मिट्टी वतन की जब भी पुकारे दिल हो जाये परेशान

 

ऊँची इमारतें हैं फूल हैं चमन हैं

फिर भी कहीं कोई खालीपन है

अपना कोई ना अपनापन है

दौड़ है दौलत की हर कोई मग्न है

किसी को किसी का नही ध्यान

 

किसी को विदेशी चकाचौंद भा गई

किसी को रोजी रोटी खींच लाई

किसी ने वतन की मिट्टी भुलाई

पराई ज़मीं पे दुनिया बसाई

भुलाके अपना देश, शहर, मकान


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