पिता
पिता
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मां ने मुझको,
भावनाओं का प्रबल,
संबल दिया,
पर पिता तुमने मुझे,
जग जीतने का,
बल दिया।
ये कदम कमजोर थे,
झंझावतों सा दम नहीं,
डर था मैं रह जाऊं ना,
लक्ष्य से कुछ कम कहीं,
हर क़दम पर तुमने मुझको,
मुश्किलों का हल दिया।
तेरे कंपित हाथ का,
अहसास सिर पर बस रहे,
हों भले दुश्वारियां पर,
'राज' जस का तस रहे,
शुभकामना प्रसाद से ही,
मैंने जग हासिल किया।
मैं चला उंगली पकड़कर,
भूल कैसे पाऊंगा,
कदम जब थकने लगें,
आधार मैं बन जाऊंगा,
आज अपना कर न्यौछावर,
मुझको स्वर्णिम कल दिया।