STORYMIRROR

Kusum Kaushik

Others

4  

Kusum Kaushik

Others

पीस ऑफ़ माइंड

पीस ऑफ़ माइंड

1 min
144

          

जब आंखे उनकी बन जाती थीं एक्स रे मशीन

और उतार लेतीं थी आत्मा तक के चित्र

पूरी ढकी हुई भी मुझको कर देतीं थी नग्न सा

तो सोचती थी कि कहीं पीस ऑफ़ माइंड मिले।


 जब जाना होता था छोड़ कर लाडली को

अपने व उसके चारों और खींच कर एक लक्ष्मण रेखा

और वापसी भी अपनी व उसकी सलामती की दुआ के साथ

तो चाहती थी कि कहीं पीस ऑफ़ माइंड मिले।


घर से रोज रोज़ सैकड़े की दूरी सुबह शाम

साथ मे दो नन्ही सी जान

थक कर रोज टूट जाना

तो लगता था कि कहीं पीस ऑफ़ माइंड मिले।


जहाँ भी रही दोहरा भेष सजाया

 न कुछ किया न करने दिया

दूर से ही सही रोटियां अपनी ही सेंकीं

फिर भी लगा कि पीस ऑफ़ माइंड मिले।


जो जल सागर में बसे सो यही घट माही

ऐसे घट घट राम हैं दुनिया देखत नाहीं

इतना तो पढ़ा पर ये ना गढ़ा कि,

अब भी नही तो पीस ऑफ़ माइंड कहाँ मिले? 


       

 


Rate this content
Log in