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MS Mughal

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पीर नसीर साहब की गज़ल

पीर नसीर साहब की गज़ल

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मेरी ज़िंदगी तो फिराक है वोह अज़ल से दिल में मक़ी सही 

वोह निगाह ए शौक़ से दूर हैं  रग ए जां से लाख करी सही


हमे जान देनी है एक दिन वोह किसी तरह वोह कहीं सहीं

हमे खेंचिए आप डार पर जो कोई नहीं तो हमहीं सही 


सर ए तूर हो सर ए हश्र हो हमे इंतजार कबूल है 

वोह कभी मिले वोह कहीं मिले वोह कभी सही वोह कहीं सही


न हों उनपे जो मेरा बस नही के यह आशिकी है हवस नही 

में उन्हीं का था में उन्हीं का हूं वोह मेरे नहीं तो नहीं सही 


मुझे बैठने को जगह मिले मेरी आरज़ू का भरम रहे 

तेरी अंजुमन में नही तेरी अंजुमन के करी सही



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