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Akhtar Ali Shah

Others

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Akhtar Ali Shah

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फटी जेब

फटी जेब

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फटी जेब तो सिक्कों के संग ,

एक एक कर रिश्ते टपके ।

मैं वो निर्धन हूँ गुम अपने,

रिश्ते सारे ढूंढ रहा हूँ ।।


पैसों की दुनिया है प्यारे,

खाली जेब कहाँ है चारा ।

निर्धन की आँखों के आगे,

फैला रहता है अंधियारा ।।

रिश्तेदार करीब न आते ,

इज्जत को ठप्पा लगता है।

रात रात भर तन्हा निर्धन ,

रातों में अपनी जगता है ।।

संबंधों की अमर बेल भी ,

तो मुरझा जाती अभाव में। 

नंगे पांव अभागा मैं तो ,

आज सहारे ढूंढ रहा हूँ ।।

फटी जेब तो सिक्कों के संग,

एक एक कर रिश्ते टपके ।

मैं वो निर्धन हूँ गुम अपने,

रिश्ते सारे ढूंढ रहा हूँ ।।


जब पटेल का पाड़ा मरता,

लोग बैठने को जाते हैं ।

धनवानों के आगे पीछे ,

लोग यकीनन मंड़राते हैं ।।

कुछ झूठन पाकर खुश होते,

कुछ को संबल यार चाहिए।

खैराती खुशियों पर होना,

बस उनका अधिकार चाहिए।। 

कमी नहीं ऐसे लोगों की,

हाथ उठाने में जो माहिर ।

मैं तो उठा सके सिर अपने ,

वही शरारे ढूंढ रहा हूँ ।।

फटी जेब तो सिक्कों के संग,

एक एक कर रिश्ते टपके ।

मैं वो निर्धन हूँ गुम अपने ,

रिश्ते सारे ढूंढ रहा हूँ ।।


"अनन्त" जो रफ्तार जगत की ,

उसको समझो तो सुख पाओ ।

दौलत वालों की दुनिया में ,

कभी भूल कर भी ना जाओ ।। 

मान और सम्मान की दौलत,

गर पाना खुद जीना सीखो ।

अमरबेल न बनो ,सहारों ,

को छोड़ो विष पीना सीखो।। 

ठोकर खाकर नही रूका जो,

मंज़िल उसको लेने आती ।

इसीलिए विष पीकर भी त,

मैं उजियाला ढूंढ रहा हूँ ।।

फटी जेब तो सिक्कों के संग,

एक एक कर रिश्ते टपके।

मैं वो निर्धन हूँ गुम अपने ,

रिश्ते सारे ढूंढ रहा हूँ ।



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