फर्क पड़ता है
फर्क पड़ता है
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई अपना दूर होता है
तनहा जीने को दिल मजबूर होता है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई मासूम भूख से बिलखता है
क्षुधा मिटाने को अपनी रोटी चोरी करता है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई सैनिक सीमा पर शहीद होता है
पलकें बिछाए बेटा उसका राहें उसकी तकता है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब मां बेटे का इंतजार करती है
ख़ुशियों पर उसकी जांनिसार करती है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई बाप दहेज के ख़ातिर
घर अपना गिरवी रखता है
भीगी पलकों से बेटी को विदा करता है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई अबला चीत्कार करती है
कानून की देवी से न्याय की गुहार करती है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई किसान कर्ज की सूली चढ़ता है
अन्नदाता ही इस देश का भूख से मरता है।
बहुत फर्क पड़ता है
जब कोई घुट-घुट कर जीता है
पर दर्द उसका ये जहां नहीं समझता है।
