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Bhawna Kukreti Pandey

Others

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Bhawna Kukreti Pandey

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फोन बुक

फोन बुक

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वो दिन

ज्यादा पुराने नहीं

लेकिन याद करने में

बहुत थकाते है

दिलो दिमाग को।

हरी दूब पर

गोल घेरे में बैठ

साझा करते अपने अपने

घर से लाया खाना

बांटना मन सहेलियों संग

साथ में परोसते

विश्वास एक दूसरे

के साथ।

चढ़ते हुए बस में

छेकना सीट उस एक

झल्ली से सखी के लिए

जो सालों घर परिवार में

गुम हो कर भूल गयी

कैसे करते हैं बात

लेते है जरा सी जगह

अपने लिए

समाज में।

लेक्चर के

बीच में सुनना फोन पर

उलाहने घर की बेचैनी से

"यह नौकरी परिवार के लिए है

या परिवार नौकरी के लिए"

देना सखी का दिलासा

देख कर बेमेल होता चेहरा

मुस्कराते होंठ और

उदास आंखें।

भीग जाती हैं आंखें

जब उलझन और संसार में

याद आती है वे भरोसेमंद,

समर्पित सखियां,

बरबस उठती है उंगलियां

फोन पर नंबर मिलाने फिर

ठहर जाती है कि सब व्यस्त होंगे

सुखी सलोने सलोने जीवन में

क्यों डालूं उलझन अपनी

उनके संसार में।


वे अब भी है

अभिन्न प्रिय सखियां मेरी

लेकिन संजोयी

हुई है मैंने वे एक नंबर सी

मेरी फोन की

फोनबुक में।


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