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अमित प्रेमशंकर

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अमित प्रेमशंकर

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फलाना डे ढीमकाना डे

फलाना डे ढीमकाना डे

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ये फलाना डे, ढीमकाना डे वालों से

मुझे सख़्त नफ़रत है

न हमारी संस्कृति है न सभ्यता

तो क्या इसकी जरूरत है!!

छोड़ दे तू, फ़िजूल है यह सब

तेरी सारी इश्क़बाजी बैरत है

न मरते काम आएगा न जीते

तो क्या इसकी जरूरत है!!

जिसे समझ रहे हो साथी

वो सब छल-कपट माटी की

मूरत है

कर ले माता-पिता से प्रेम

वही सच्चे की प्रेम की सूरत है!!

याद रख, एक दिन पछताना पड़ेगा

फिर आँसू बहाना पड़ेगा

ग़र अवगत हो इन बातों से

तो फिर, क्या इसकी ज़रूरत है!!

       


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