फिर आज सिया समायेगी
फिर आज सिया समायेगी
1 min
131
फटा कलेजा धरती का,
फिर आज सिया समाएगी ।
युग बदले या जग बदले ,
पर वही छली जाएगी ।
चाहे कितना शोर मचा लो ,
पर प्रश्न वहीं रह जाएगा ।
आरोपों की मलिन चिता पर ,
उसको परखा जाएगा ।
क्यों मुझ पर अन्याय किया?
धरती की बेटी पूछ रही ।
क्यों सतयुग हुआ कलंकित ?
क्यों मर्यादा मौन रही ?
स्वार्थ की मैली चादर,
अब और नहीं ओढ़ेगी ।
ना अग्नि परीक्षा देगी ,
ना वन-वन वो भटकेगी ।
सीता शक्ति स्वरूपा ,
शक्ति का रूप धरेगी ।
अब अपने ही हाथो,
रावण का नाश करेगी ।