पहचान बना ली है मैंने
पहचान बना ली है मैंने
कुछ समझ तो थी पहले भी
अब सीखी है होशियारी भी
नरम बातों से जो ना बनी बात
तो सीखी तेज़ सख्त आवाज भी,
खुद को बेबस मानना छोड़ दिया है
ये जिम्मा भी दूसरों पर डाल दिया है
लोग कहते थे अक्सर मुझे
कि क्यूं हर किसी के लिए रोते हो
मैंने कहा ये तहज़ीब थी मेरी
पर अब ये मेरी नई आदत है,
लोग यूं ही बस फायदा उठाते हैं
गली गली मेरा मजाक बनाते हैं
चप्पल की धूल को सर पर नहीं लगाते
ये कह के मुझे अक्सर चिढ़ाते हैं,
आसमान में सुराख करने की देर थी
एक पत्थर तबीयत से मारने की देर थी
कुछ मजबूरियों ने बंदिशों ने रोक लिया
वरना यहां हर चीज मेरे मुताबिक थी,
अब अपनी पहचान बदल ली है मैंने
इस दौर की हवा में सांस ली है मैंने
कालीन बन के सबकी धूल खुद पे लेता था
अब उसी घर की चौखट लांघ ली है मैंने
अब अपनी पहचान बना ली है मैंने...।