पगफेरा
पगफेरा
क्या खोया क्या पाया मैनें
एक नजर जरा इस पर डालूँ
2021 की यात्रा खत्म हुई
अब बाईस सम्हाल लूँ
एक चलचित्र सा चलने लगा जब
मैंने बरस पे नज़र थी डाली
कैसा हाहाकार मचा था
सबकुछ रीता सबकुछ खाली
क्या प्रलय इसी को कहते हैं?
इस प्रश्न ने कितना था झकझोरा
कैसा समय दर्दनाक था वह
जब अपनों ने भी मुख था मोड़ा
दोष किसी को देना भी क्यों
हर जान की अपनी कीमत होती
इतनी सस्ती भी तो नहीं थी
किसी और के लिए जो खोती
आया था दो हजार इक्कीस
अपने पराये का भेद कराने
आभासी दुनिया से इतर हम
सच्चे अपनों को पहचाने
हमने इससे वह भी सीखा
जीवनभर जो ज्ञान न पाया
क्षणभंगुर ही है यह जीवन
झूठी सारी है मोहमाया
फिर क्यों प्राणी मूढ़ तू इतना
करता रहता मेरा तेरा
तू तो बस इस सृष्टि में केवल
करने आया है पगफेरा
दुनिया तो इक मेला ही है
तूने भी यहाँ डाला है डेरा
सूत्रधार तो ऊपर बैठा
बदले कठपुतली का चेहरा
क्या रखा है जाति धर्म में
जो भी है बस मानवता है
फिर क्यों धर्म के नाम पर सदा
बढ़ती जाती दानवता है
कभी तो पूर्णविराम हो कोई
आत्मज्ञान जो हमें करा दे
कोई तो स्वार्थसिद्धि छुड़वा कर
परोपकार का पाठ पढ़ा दे.
