ओस की बूूंद(1)============
ओस की बूूंद(1)============
कोमल रंगीन पंखुड़ियों पर सजे पुष्प के
बूूंदे ओस की आभा अद्भूत बिखेेेेरती हैं
क्या है बिखरा धरा पर सब जीवन
छवि उसकी बङी सहजता से उकेरती हैं।।
एक लङी श्वेत मोतियों की दुुुुुुर्वा के
तन पर बूूंदे ओस की बिछी दिखती हैं
इसी उपलब्ध पटल पर ये सब
हर शै,संबंंध, सूक्ष्म संयोजन की
अनुपम गाथा भी लिख जाती हैं।।
इन बूूंदों की गजब चमक संकेत नवजीवन के
पल पल हर पल गुुन गुन कर बुनती हैैं
आगे कङी धूप मेें सूरज के तो फिर
तप तप कर लुुुप्त सब ये हो लेती हैं।।
एक नेमत यह मिला जो जीवन है
लुुुप्त होने से पहले तप जीवन धूप मेें
परिवेश अपना निखार ले जीव तुुुम
संदेेश यही दे ओस की बूूंदें
वादा कर आने की अगले दिन
सजीली प्रकृति में गुम हो लेती हैैं।।
ओस की बूंदों की यह कलाकारी
सोच को सीख देती प्रतिदिन न्यारी
धरा पर बिखरा सब तेरा पर तू नश्वर है
सजा ओस की बूूंदों की तरह धरा को
न कर दंभ,दर्प,गुुुरूर मिलना तो धरा में ही है।।
