ओढ़नी
ओढ़नी
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मेरी माँ मेरी ओढ़नी
दुनिया में सबसे न्यारी,
मेरी जरूरतें पूरी होती सारी
इससे बड़ी न छत कोई
ढकती मुझको सारी ।
कभी मुँह पौंछ लेती हूँ
कभी मुँह छुपा लेती हूँ
न लगे मुझे कोई डर
रहती हूँ सदा प्रसन्न
जब तक ओढनी मेरे संग।
मेरी माँ मेरा संसार
इस ओढ़नी में
प्यार का न कोई पारा वार,
जब तक है इस ओढ़नी की छाया
मुझको न कोई डर सताया,
डर है तो केवल यही
यदि उड़ गई ये ओढ़नी कल
मेरा क्या होगा तब।
