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ओ मुरली वाले

ओ मुरली वाले

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आजा ओ मुरली वाले आजा,

ओ बंसी वाले आजा,


राधा बैठी पनघट में तेरी राह तके,

वो भरती नहीं है नीर रे,

कुछ नहीं कहती है, चुप- चुप रहती है,

जग से छुपाती मन को पीर रे,

कब से बुलाती है, तुझे गिरिधारी,

गोकुल में भटके ब्रज की प्यारी,

तेरे लिए बैठी कुंज गलिन में,

काहे तू इतनी देर करे रे.....


आजा ओ मुरली वाले आजा,

ओ बंसी वाले आजा,


तेरे लिए सर पे रखकर मटकी,

ग्वालिन नित् गलियों में भटकी,

तेरे लिए कितने भेष बनाए,

बन सन्यासी रास रचाए,

तू जो चुरा ले माखन घर से,

रोज इसी आशा में तरसे,

तेरे लिए उद्धव की ना मानी,

प्रेम से हारा वो ब्रह्मज्ञानी.......


आजा ओ मुरली वाले आजा,

ओ बंसी वाले आजा,


तेरे लिए बैठी पलकें बिछाए,

तेरे बिना एक कौर ना खाए,

बाहों का बनाकर के झूला,

तुझे हाथों से निशदिन चंवर डुलाएँ,

तुझमें उसकी दुनिया समायी,

तेरे बिना कैसे जीती है माई,

तेरे लिए वो नित् माखन मथती,

राह खड़ी तेरी राह वो तकती.......


अब आजा, ब्रज के दुलारे आजा,

यशोदा के प्यारे आजा,

ओ मुरली वाले आजा।

ओ बंसी वाले आजा।।



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