नव वर्ष
नव वर्ष
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लो नया वर्ष फिर आ गया
नए रंग चमक दमक के साथ
सीता अशोक के सुर्ख़ नारंगी फूल
खिल उठे आन बान और शान से।
और झर झर झर झरक गए
धरती को मधुमय बना गए
सौंदर्य मंडित फिर हुई धरा
लाल फूलों से भर गया आँचल।
समय तो एक प्रवाह है
वह बहता ही जाता है
सूरज को फर्क नहीं पड़ता
साल नया है या पुराना।
हर सुबह उसकी
नई किरण फूटती है
क्षितिज को रंग देती है
जागरण का संदेश लाती है।
