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डॉ. रंजना वर्मा

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डॉ. रंजना वर्मा

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नव बसंत

नव बसंत

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अलियों में कलियों में

फूलों की गलियों में

चम्पई उजालों में 

सुरमई अंधेरों में

जीवन लहराया

नव बसंत आया


गोरी के गालों पर

होठों पर बालों पर

कोयल की कूक पर

पपिहे की हूक पर

रंग नया छाया

नव बसंत आया


फूल उठे बौरों पर

मंडराते भौंरों पर

गाँव गली शहरों पर

सरिता की लहरों पर

प्यार थरथराया

नव बसंत आया


धनिया पर होरी पर

दूध की कटोरी पर

षोडशी किशोरी पर

श्याम रंग गोरी पर

रस सा बरसाया

नव बसंत आया


सिंधु की तरंगों पर

संध्या के रंगों पर

हृदय की उमंगों पर

खिले खिले अंगों पर

जैसे मद छाया

नव बसंत आया


पौर की नसेनी को

दुल्हन की बेनी को

शिल्पी की छैनी को

हरिक नज़र पैनी को

रूप नया भाया

नव बसंत आया


चितवन की बरछी ने

हैं कितने उर छीने

भूल गये गीतों को

रूठ गये मीतों को

प्यार ने बुलाया

नव बसंत आया।


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